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पैसा-2 / नज़ीर अकबराबादी

पैसे ही का अमीर के दिल में ख़याल है।
पैसे ही का फ़क़ीर भी करता सवाल है॥
पैसा ही फ़ौज, पैसा ही जाहो जलाल<ref>शानोशौकत, रोबोदौब</ref> है॥
पैसा ही रंग रूप है पैसा ही माल है।
पैसा न हो तो आदमी चर्खे़ की माल है॥1॥

पैसे के ढेर होने से सब सेठ साठ हैं।
पैसे के ज़ोर शोर हैं पैसे के ठाठ हैं॥
पैसे के कोठे कोठियां, छैः सात आठ हैं।
पैसा न हो तो पेसे के फिर साठ-साठ हैं॥
पैसा ही रंग रूप है पैसा ही माल है।
पैसा न हो तो आदमी चर्खे़ की माल है॥2॥

पैसा न हो तो हाथी भी दमड़ी का दस्ता है।
पैसे से ऊंट लाख अशर्फ़ी को सस्ता है॥
हर वक़्त जिसके सामने पैसा बरसता है।
लादे हैं ऊंट को कोई, हाथी को कसता है॥
पैसा ही रंग रूप है पैसा ही माल है।
पैसा न हो तो आदमी चर्खे़ की माल है॥3॥

पैसा जो होवे पास तो कुन्दन के हैं डले।
पैसे बग़ैर मिट्टी के उससे डले भले॥
पैसे से चुन्नी लाख की, एक लाल देके ले।
पैसा न हो तो कौड़ी को मोती कोई न ले॥
पैसा ही रंग रूप है पैसा ही माल है।
पैसा न हो तो आदमी चर्खे़ की माल है॥4॥

तेगो सिपर<ref>ढाल तलवार</ref> उठाते हैं पैसे के वास्ते।
तीरो सनां लगाते हैं पैसे के वास्ते॥
मैदां में जख़्म खाते हैं पैसे के वास्ते।
यां तक कि सर कटाते हैं पैसे के वास्ते॥
पैसा ही रंग रूप है पैसा ही माल है।
पैसा न हो तो आदमी चर्खे़ की माल है॥14॥

आलम में खैर करते हैं पैसे के ज़ोर से।
बुनियाद दैर<ref>इबादतखाना</ref> करते हैं पैसे के ज़ोर से॥
दोजख़ में फेर करते हैं पैसे के ज़ोर से।
जन्नत की सैर करते हैं पैसे के ज़ोर से॥
पैसा ही रंग रूप है पैसा ही माल है।
पैसा न हो तो आदमी चर्खे़ की माल है॥15॥

दुनियां में दीनदार कहाना भी नाम है।
पैसा जहां के बीच वह क़ायम मुकाम है॥
पैसा ही जिस्मो जान है पैसा ही काम है।
पैसे ही का ‘नज़ीर’ यह आदम गु़लाम है॥
पैसा ही रंग रूप है पैसा ही माल है।
पैसा न हो तो आदमी चर्खे़ की माल है॥16॥

शब्दार्थ
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