कौआ था एक काला काना
लेकिन था वो बड़ा सयाना
घर-घर टुकड़े चुगता था वो
चोरी कभी न करता था वो ।
एक दिन उसको प्यास सताई
पानी कहीं न दिया दिखाई
तब प्यासा कौआ घबराया
नीचे उतर भूमि पर आया ।
वहाँ खेत में एक घड़ा था
पर उसमें पानी थोड़ा था
उसने पूरा ज़ोर लगाया
पर पानी तक पहुँच न पाया ।
पास में थे कुछ कंकड़-पत्थर
उसकी नज़र गई अब उन पर
लाया एक-एक चुन-चुनकर
डाला उन्हें घड़े के भीतर ।
तब पानी कुछ ऊपर आया
कौवे ने कुछ साहस पाया
घण्टों-घण्टों लगा रहा वो
अपनी धुन में पगा रहा वो ।
आख़िर पानी ऊपर आया
उसने मेहनत का फल पाया
पानी पीकर प्यास बुझाई
फिर पंखों में ताक़त आई ।
जो धुन के पक्के होते हैं
वो हर बार सफल होते हैं ।।
1967