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प्रकृति / व्योमेश शुक्ल

वह कई बार

पेड़ों और

दूसरी वनस्पतियों के

पास जाता है लेकिन

वह उनके नाम कम ही जानता है

अपरिचय है यह जानने के बावजूद के ये

एक बड़ी सचाई है दुनिया में

ज्यादा जगह घेरती हैं

जैसे नदियाँ झीलें समुद्र या दूसरे पानी या दूसरे हरे


जब वह इन सब के

बीच होता है तो अपने से अकेला होता है

जैसे यदि इन्हें नहीं जानता या कम जानता है

तो खुद को भी नहीं जानता या

कम जानता हो जाता है


उसके लिए प्रकृति चित्र है

एक बड़ा चित्र

वह शहर में पैदा हुआ

उसने चीज़ों और लोगों को करीब देखा है

और इन करीबों के बीच को ही वह

दूरी की तरह समझ सका

वह अपनी निगाह को

एक छोटे से इर्द-गिर्द में ही

हमेशा रखता आया

इतने बड़े दृश्य पर वह

दृष्टि को कहाँ रखे


उसे एहसास होता है कि

आँखों को इतने विराट में

आराम मिलता होगा

इस तरह देह को भी।

प्रकृति के बीच में वह

चुप हो जाता है

अजनबियों से क्या बोले ?