Last modified on 22 नवम्बर 2014, at 00:26

प्रजा / सुरेन्द्र रघुवंशी

सारी प्रजा मवेशियों में तब्दील होकर
बेजुबान गाय बन गई है
जिसे खदेड़ रहे हैं
व्यवस्था के मुस्तण्ड चरवाहे

हरे-भरे मैदान पर कब्ज़ा जमाकर
इन मवेशियों को भगा रहे हैं
बंजर और तपती चट्टानों वाले पठार की ओर.
जिस ओर हाँक दिया जाता है समूह में उन्हें
वे उस ओर अपनी गर्दन नीची करके
चलने लगते हैं सहर्ष

जिस दिशा में घेर दो उन्हें वे घिर जाते हैं निर्विरोध
मवेशियों में तब्दील हो चुकी प्रजा
भूल गई है अपने नुकीले सींगों का अर्थ

वह सिर्फ रम्भाती है
हुँकार नहीं भरती
व्यवस्था का चरवाहा फटकारता है लाठी
संकेत की दिशा में
फिर से भयातुर हो दौड़ने लगता है
मवेशीनुमा प्रजा का समूह