प्रिय!
प्रणय में-
अधूरेपन
अजनबीपन और उदासीनता को
कब तक हम ढोते फिरें?
क्यों न हम,
एक दूसरे की देह की बांसुरी में
अपनी-अपनी सांसों और धड़कनों के
स्वर भर दें?
जिएं या मरें
लेकिन प्यार तो करें।
प्रिय!
प्रणय में-
अधूरेपन
अजनबीपन और उदासीनता को
कब तक हम ढोते फिरें?
क्यों न हम,
एक दूसरे की देह की बांसुरी में
अपनी-अपनी सांसों और धड़कनों के
स्वर भर दें?
जिएं या मरें
लेकिन प्यार तो करें।