Last modified on 6 जनवरी 2013, at 01:58

प्रतिक्रिया / किरण अग्रवाल

लोग थे हैरान / परेशान
धरती होती जा रही थी
जल-निमग्न

जमुना कसमसा रही थी
अपनी परिधि में
इच्छाएँ थीं
भ्रष्टाचार के पुल-सी भग्न
प्रेयसी की मांसल देह
खो चुकी थी आज अपनी आँच

बन्द
कमरों में भी
लोग काँप रहे थे