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प्रलय बीज / संजीव 'शशि'

बाधित कर गंगा की धारा,
ये प्रलय बीज बोया हमने॥

सींची धरती अपने जल से,
सदियों-सदियों हमको पाला।
पर हमने माँ के आँचल में,
औद्योगिक कचरे को डाला।
गंगा जल को करके खारा,
ये प्रलय बीज बोया हमने॥

भाया विकास का मोह जाल,
बन बैठे हम सब व्यापारी।
निज सुख की खातिर जिस पल में,
हमने बेचीं गंगा प्यारी।
उस पल हमने सब कुछ हारा,
ये प्रलय बीज बोया हमने॥

अमृत-सी निर्मल धारा को,
हमने अपने हठ से रोका।
गंगा की आँखों में आँसू,
खाया है बेटों से धोखा।
अपना ही दोष रहा सारा-
ये प्रलय बीज बोया हमने॥
धर रौद्ररूप शिवप्रिया चलीं,
गर्जन करतीं कर अट्हास।
दण्डित करतीं वह हम सबको,
जिस ओर दृष्टि जाये विनाश।

क्यों रोये अब किसने मारा-
ये प्रलय बीज बोया हमने॥