जब अपने से छोटे,
और उनसे भी छोटे
रुख़सत हो,
निकलते चले जाते हैं सामने से
एक-एक कर,
अपना जीवन अपराध लगता है
जब वंचित रह जाते हैं लोग,
उस सबसे जो हमने पाया
तरसते देख गुनाह लगती हैं-
अपनी सुख-सुविधायें,
कि दूसरे का हिस्सा
हम दबाये बैठे हैं
अपनी सारी क्षमतायें बेकार
कि अब कौन सी सार्थकता
बाकी रह गई?
भाग्यशाली हैं वे,
जो जीवन-मृत्यु को
सही सम्मान दे,
समय से प्रस्थान कर जाते हैं