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प्रश्न चिन्ह / अंशु हर्ष

ज़िन्दगी जीते हुए एक दिन अचानक
अहसास होता है कि
ये जो हाड़ मॉस का बना शरीर है
इसे चलाने के लिए एक रूह रहती है इसके अंदर
और उस रूह की कई परतें है
कई जन्मों का लेखा जोखा लिए
ये परतें खुलती जाती है उम्र के साथ
और हम प्रश्नचिन्ह लगाकर
उन लम्हों के आगे कई सवाल खड़े कर देते है
जवाब कुछ नहीं मिलता
मन की परतें जो कहती है
उसे मानते चले जाते है
यादें , आँसू , सपने , शब्द
सब उन्हीं परतों के बीच
खुद को उलझा पाते है
इन्हीं परतों के बीच ही तो
खुद के होने की वज़ह
समझ पाते है