Last modified on 9 जुलाई 2010, at 16:39

प्राण-सखा / वीरेन डंगवाल


समय कठिन
प्राण सखा आंखें मत फेर

टोक-टोक जितना भी जी चाहे टोक पर आंखे मत फेर !

इन दुबले पांवों को
हाथों को
पकड़-जकड़
चढ़ी चली आती है अकड़ भरी
लालच की बेल
शुरू हुआ
इस नासपीटे वसन्‍ता का
सर्व अधिक कठिन खेल

आच्‍छादित हो जाएंगे खिड़की-दरवाजे
जहरीले नीले चित्‍ताकर्षक फूलों से
फूटेंगी दीवारें
सोच नहीं इससे क्‍या होना-जाना है
समय अभी
हेर-हेर-टेर
मुझे टेर
प्राण सखा !
00