प्रिय तोहि नयनन ही में राखूं।
तेरी एक रोम की छबि पर जगत वार सब नाखूं॥१॥
भेटों सकल अंग सांबल कुं, अधर सुधा रस चाखूं॥
रसिक प्रीतम संगम की बातें, काहू सों नही भाखूं॥२॥
प्रिय तोहि नयनन ही में राखूं।
तेरी एक रोम की छबि पर जगत वार सब नाखूं॥१॥
भेटों सकल अंग सांबल कुं, अधर सुधा रस चाखूं॥
रसिक प्रीतम संगम की बातें, काहू सों नही भाखूं॥२॥