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प्रीति के हिरण / कमलकांत सक्सेना

भरें कुलाचें प्रीति के हिरण।

जाने क्या बात हुई उस दिन
देखा ज्योंहि रूपसि हवा को
भूल ही गये चौकड़ी नयन
मौन मौन बैठा एकाकी
हो आया रोमांचित मौसम
पुलक उठा विश्वासों का मन।
भरे कुलाचें प्रीति के हिरण।

यही नहीं और भी कुछ हुआ
जंगली मोर ने छोड़े पर
गीत गुनगुनाने लगा सुआ
शांतमना लेटा रहा वरुण
लहरों ने नीला गगन छुआ
कैसे कैसे मिठ्भाषी क्षण।
भरें कुलाचें प्रीति के हिरण।