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प्रेमक संज्ञान / शारदा झा

अदौ काल सँ
बनैत रहल अछि धुरी
जगजियार होइत रहल अछि
जेना अन्हारिया अकासक अंगना पर
उज्जर पिठार सँ पारल अरिपन
आ ओहि पर सेनुरक ठोप भेल
हमर आ अहाँक हृदय
अपन प्रेम अछि
जेठक गरम दुपहरिया मे
अकस्मात कारी मेघक बरखा मे भिजैत
झमटगर अमलतासक गाछ
जकर फूलक पोर पोर सँ चुबैत अछि
मेघक नेह धरतीक लेल
हम आ अहाँ बनैत छी
ओहि मिलनक साक्षी
यैह अछि अपन प्रेमक संज्ञान
अपन प्रेम अछि गीत आ कविता सन
शब्द में व्याप्त
आ ओहि सँ फराक सेहो
मोहि लैत अछि भास आ तान मे डूबल
अहाँक ठोर पर मुस्काइत मधुर गीत
आ पपनी पर स्वप्न सन जागल इजोरिया राति
बाजि उठैत अछि बंसी जकाँ हमर देह
आ हमर अस्तित्व भ' जाइत अछि कविता
प्रेम फेर बना लैत अछि
अहाँक आ हमर हृदयकेँ बंदी
एही जन्मक लेल
ओहि शब्द जाल आ गीत मे