कैसे रोकूँ मैं अपनी आत्मा को
छूने से तुम्हारी आत्मा को ?
कैसे उठाऊँ मैं इसे ऊपर तुमसे
दूसरी चीज़ों तक?
ओह ! चाहती हूँ मैं रखना इसे कहीं दूर
अँधेरे में गुम हुई चीज़ों के बीच में
दूर कहीं किसी नीरव अज्ञात जगह में
जो रहती है बेसुध तुम्हारे गाम्भीर्य की अनुगूँज में भी
और फिर भी हर वह चीज़ बेचैन करती है जो तुम्हें और मुझे
साथ ले जाती है हम दोनों को धनुष के प्रहार की तरह
जो दोनों तारों से निकलती है एक ही सी आवाज़ I
किस यन्त्र से बिंधे हैं हम ?
और कौन सारंगीवादक रखता है हाथ में हमें ?
ओ मधुर गीत !
मूल जर्मन से अनुवाद : प्रतिभा उपाध्याय