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प्रेमिकाएँ / पूनम भार्गव 'ज़ाकिर'

औंधी पड़ी पुरानी प्रेमिकाओं की पीठ पर
उग आती है नरम दूब
हरे गलीचों पर खड़े प्रेमी देते हैं गुलाब
अपनी प्रेमिकाओं को

पूर्व प्रेमिकाएँ मसल कर पुतलियों को
धुंधलाती नज़र के साथ जलनिधि सहेज
उलीचना चाहती है जलन जबकि
कपटी के रोपे गए काँटों की चुभन
पत्थर हुई पीठ पर भी गढ़ती जा रही है
कांटो को तोड़कर
कितना भी खोंस ले
अपनी पथराई जीभ में
अनगिनत फूल छलनी हो रहे हैं
भौरों की दग़ाबाज़ी से

तितलियाँ निर्जीव हैं
मधुमक्खियाँ
छत्तों के कोटर रीतने के
गीत गा रही हैं
जनेऊ से जकड़ा प्रेमियों का दल
गोत्र के गोदाम से माल छांटता रहा है
प्रेमिकाएँ बिखरी किरचें बीनती रहीं हैं

प्रेमिकाओं का एक
सनसनीखेज खुलासा ये है कि वह
प्रेमी के छल को भी अकेले में चूमती हैं
वो दुहाई और प्रहार के चक्कर में अक्सर नहीं पड़तीं

प्रेम में नज़रंदाज़ की गई प्रेमिकाऐं अपनी पीठ छलियाओं की तरफ़ रखना चाहती है और दिल उसके पांवों में
हैरतनाक हो सकता है उनका ये नजीब अंदाज़

असल में
बात बस इतनी-सी है कि
प्रेमिकाऐं स्त्री भी है और वह अब
किसी दूसरी स्त्री की दुश्मन नहीं होना चाहती!