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प्रेम-3 / निवेदिता

आसमान स्याह है
चाँद डूबता सा
ख्वाबीद-ख्वाहिशे जगने लगी
फस्ल-ए-गुल आया भी तो क्या
वस्ल के दिन की आरजू ही रहीं.