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प्रेम / बृजेश नीरज

प्रेम!?
तुम्हारी कामुक लिजलिजाहट में लिपटा
यह लिसलिसा, भद्दा एहसास
देह से गुज़रने के बाद कितना बचता है?

झर गईं
राधा-कृष्ण से हीर-रांझा तक फैली बेल पर
खिले पुष्प की पँखुड़ियाँ

विज्ञापनों और फ़िल्मों में
आपस में लिपटी अधनंगी देहों द्वारा परिभाषित
प्रेम ने
देह के भूगोल में भटकते हुए
प्रतिस्थापित कर दिया वासना को
शब्दकोश में