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प्रेम / सुप्रिया सिंह 'वीणा'

प्रेम सौरभ सुवासित ई संसार छै,
हार में जीत छै, जीत में हार छै।

मन कोमल गगन के ई विस्तार छै,
प्रेम रवि सें ही ज्योतित ई संसार छै।

प्रेम से ही वसंत के आस-विश्वास छै,
प्रेम छै तेॅ जिनगी में हास-हुलास छै।

एक विश्वास छै ई जहाँ दू कमल खिलै,
त्याग नौका पर बैठी केॅ दू दिल मिलै।

जगत में प्रेम के महिमा बड़ी अपार छै,
बाधा बंधन सें ई उपर, ई जीवन के सार छै।

प्रेम सें बनै छै आदमी सच में महान,
प्रेम धरती पर ईश्वर के अवतार छै।