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प्रेम बाँसुरी / पीयूष शर्मा

तुम होतीं गर प्रेम बाँसुरी तो अधरों पर धर लेता
तुम से मीठी-मीठी बातें,पल दो पल मैं कर लेता
पर तुम निकलीं स्वर्ग सेविका बोलो कैसे प्यार करूँ,
जो तुम होतीं प्रेम साधिका तो बाँहों में भर लेता