जगमे सभसौं पछुआयल छी, मैथिल गण! आबहु आगु बढू;
निज अवनति-खाधिक बाधक भै मिलि उन्नति-शिखरक उपर चढू।
अछि हाँइ हाँइ कै लागि पड़ल सभ अपना अपना उन्नतिमे,
उत्थानक एहि सुभग क्षणमे घर बैसि अहीं ने बात गढू।
‘राणा प्रताप, शिवराज, तिलक’ हिनका लोकनिक जीवन-कृति सैं,
तजि आलसकेँ प्रिय बन्धु वृन्द! किछु सेवाभावक पाठ पढू।
भाषा, भूषा ओ भेष अपन हो जगजियार झट जगभरिमे,
ई अटल प्रतिज्ञा ऐखन कै पुनि मातृभूमि पर सोन मढू।