बहुत दिनों में वन देवी ने
बालों को खोला है
फूलों में गूँथ कर
लट-लट में टाँका है
लिये संग में वनबाला को
देख रहीं अपनी छवि को
खड़ी ताल पे ताली दे-दे
उड़ारहीं सारस को
देख रहीं वे जिधर लता, वह
उमड़-उमड़ आती है
रख देती हैं पाँव जिधर वे
वह धरा सिहर जाती है
क्या तुमने भी मेला यह
रंगों का देखा है?