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फुहारों में / सुरेश विमल

खेलने दो फुहारों में
अब हमें तो को नहीं माँ।

बहुत दिन की प्रतीक्षा के
बाद बादल बरसते हैं
साल भर तो इन फुहारों
के लिए हम तरसते हैं।

नाव काग़ज़ की चलाने दो
अब हमें टोको नहीं माँ।

गीत बूंदों का सुनाते
भीगते पत्ते हमें
आओ तो बाहर, बगीचे
झूमते कहते हमें।

झूमने दो कदम्बों पर
अब हमें टोको नहीं माँ।