फेंका था जिस दरख़्त को कल हमने काट के
पत्ता हरा फिर उस से निकलने लगा है यार
ये जान साहिलों के मुकद्दर संवर गए
वो ग़ुस्ले-आफताब को चलने लगा है यार
उठ और अपने होने का कुछ तो सबूत दे
पानी तो अब सरों से निकलने लगा है यार
फेंका था जिस दरख़्त को कल हमने काट के
पत्ता हरा फिर उस से निकलने लगा है यार
ये जान साहिलों के मुकद्दर संवर गए
वो ग़ुस्ले-आफताब को चलने लगा है यार
उठ और अपने होने का कुछ तो सबूत दे
पानी तो अब सरों से निकलने लगा है यार