Last modified on 24 जून 2021, at 21:27

फेरीवाला / पंछी जालौनवी

ज़्यदा से ज़्यादा
क्या बेच देता है
कम से कम
क्या कमाता है
किसको इसकी फ़िक्र है
कौन दिमाग़ खपाता है
सारा दिन लुक़में
जमा करता है
फिर शाम को
बच्चों के साथ खाता है
ज़िन्दगी पहले से ही
क्या कम फीकी थी
इस तालाबंदी में
अब तो वह भी नहीं हासिल
जो घर में रूखी सूखी थी
हम जिन ख़ुशियों को
ठुकरा देते हैं अक्सर
उन्हें पाने की फ़िराक में
उम्र भर जान खपता है
एक फेरीवाला
अपनी नाकामियाँ समेट कर
जब रात को घर आता है
अपने वही पुराने सपने
आँखों में भरकर
थकन ओढ़ के सो जाता है॥