Last modified on 19 जून 2009, at 22:52

बच्चियाँ / कविता वाचक्नवी

बच्चियो!

चुहल करती बच्चियो!
महमहाते रेशमी आँचल तुम्हारे
यकायक, जब कभी
छूकर गुजरते हैं
हमारी बाँह को, तो
कोई मानो
कह रहा हो -
बाँधना मत दूर
इक अनजान
ऐसे हाथ में
कि हम
मनो दूरी मनों पर
झेलती रोया करें
ढोया करें
हरदम एकाकी।