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बड़प्पन / संजय अलंग


नादानी छोड़ दी मैने
बचपना जो छोड़ दिया मैनें
मैने पतंग उड़ाना छोड़ दिया
मैने कहानियाँ सुननी बन्द कर दीं
 
छिपना छोड़ दिया मैनें
डर कर, माँ के आँचल में
मैनें बारिश में भींगना छोड़ दिया
चढ़ना छोड़ दिया मैनें
पेड़ो पर भी
बगीचे से अमरूद चुराने
बन्द होने ही थे
नहीं खेलता मैं अब
रेसटीप भी
मैनें नदी में नहाना भी छोड़ दिया
 
तुम समझ गए होगे
कि मैं भी तुम्हारी तरह
बड़ा और अक़्लमन्द हो गया हूँ