Last modified on 7 मई 2008, at 02:25

बड़ी बात / शैलेन्द्र चौहान

तुम हो

एक अच्छे इंसान

डिब्बे में बन्द रखो

अपनी कविताएँ

मुश्किल है थोड़ा

अच्छा कवि बन पाना


कुछ तिकड़म

चमचागिरी थोड़ी और

अच्छा पी. आर.

नहीं तुम्हारे बस का

कविताएँ अपनी

डिब्बे में बंद रखो


आलोचकों को देनी होती

सादर केसर-कस्तूरी

संपादक को

मिलना होता कई बार

बाँधो झूठी तारीफ़ों के पुल पहले

फिर जी हुजूरी और सलाम


लाना दूर की कौड़ी कविताओं में

असहज बातें,

कुछ उलटबासियाँ

प्रगतिशीलता का छद्‍म

घर पर मौज-मजे, दारू-खोरी

निर्बल के श्रम सामर्थ्य का

बुनना गहन संजाल


न कर पाओगे यह सब

तो कैसे छप पाओगे

महत्वपूर्ण, प्रतिष्ठित

पत्र-पत्रिकाओं में?


क्योंकर कोई, बेमतलब

तुम्हें चढ़ाएगा ऊपर?


अब

बिता रहा समय

लिख कर कुछ

अण्डबण्ड


काम बड़ी चीज है

खाली दिमाग

शैतान का घर


लेकिन चाहता है आदमी

हर रोज

कुछ खाली समय