Last modified on 5 अप्रैल 2015, at 16:42

बढ़े चलो / श्रीनाथ सिंह

फूल बिछे हों या कांटे हों,
राह न अपनी छोड़ो तुम।
चाहे जो विपदायें आयें,
मुख को जरा न मोड़ो तुम।
साथ रहें या रहें न साथी,
हिम्मत मगर न छोड़ो तुम।
नहीं कृपा की भिक्छा मांगो,
कर न दीन बन जोड़ो तुम।
बस ईश्वर पर रखो भरोसा,
पाठ प्रेम का पढ़े चलो।
जब तक जान बनी हो तन में,
तब तक आगे बढ़े चलो।