मेरे हृदय-रक्त की लाली इस के तन में छायी है, किन्तु मुझे तज दीप-शिखा के पर से प्रीति लगायी है। इस पर मरते देख पतंगे नहीं चैन मैं पाती हूँ- अपना भी परकीय हुआ यह देख जली मैं जाती हूँ। दिल्ली जेल, नवम्बर, 1931