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बदलते विश्वास / उमा अर्पिता

एक दिन बेसुध-सी
पत्ते-पत्ते पर
तुम्हारा नाम आँक आई थी।
धूप भी तुम्हारे नाम
आँक दी और चाँदनी भी
तुम्हारे ही नाम आँक आई थी
हवा के पर बाँधे/पंछी की आतुरता समेटे
डाल-डाल से
तुम्हें पुकार आई थी,
तुम्हें अपना आधार बना
कोने-कोने
विश्वास के गुलाब रोप आई थी
मन के जिन उद्वेगों ने
सागर की लहरों को भी
बौना घोषित कर दिया था,
उन्हीं उद्वेगों पर
एक दिन तुम हँस दोगे
इतना तो
विश्वास न था!