सिर्फ मैं ही क्यूं लिखूं
एक मुस्कुराते हुये
बच्चे की आँखें
बहते बहते
लबों तक आ गई हैं
एक ज़रुरतमंद
किसान की रोटी
ना जाने कितनी
स्कीमें खा गई हैं
सिर्फ मैं ही क्यूं लिखूं
देशद्रोह के सही मतलब को
कुछ लोगों की खुशनूदी की खातिर
बुरा नहीं कह सकते हम सबको
सिर्फ मैं ही क्यूं लिखूं...
खुश्क पत्तों को
ज़मीनों में बोया जा रहा है
फसल के ख़्वाब
सींचे जा रहे हैं आँखों में
चंद गमलों के लिए
पौदे उगाये जा रहे हैं
सिर्फ मैं ही क्यूं लिखूं
तुम भी लिखो
हम भी लिखते हैं
बदलाव आयेगा॥