किस्सों की बस, पढ़ूँ किताब,
‘मियाँ पढ़क्कू’ मिले खिताब।
रहूँ खेलने को बेताब,
जल्दी आए अपना दाँव।
गुस्से में खा जाऊँ ताव,
जिससे अपना रहे रुआब।
रात और दिन देखूँ खवाब-
‘करूँ न मेहनत, बनूँ नवाब’।
[बालमेला, नवंबर 1990]
किस्सों की बस, पढ़ूँ किताब,
‘मियाँ पढ़क्कू’ मिले खिताब।
रहूँ खेलने को बेताब,
जल्दी आए अपना दाँव।
गुस्से में खा जाऊँ ताव,
जिससे अपना रहे रुआब।
रात और दिन देखूँ खवाब-
‘करूँ न मेहनत, बनूँ नवाब’।
[बालमेला, नवंबर 1990]