Last modified on 15 जनवरी 2009, at 11:26

बनैली हवा / सुधीर सक्सेना

वह
भागती हुई
आती है
दूर जंगल के पार से
और
झूल जाती है
बाँहों में निढाल
हाँफती हुई
सिर टिका क्न्धे पर

गो मैं पहाड़ हूँ
और वह बनैली हवा ।