कितनी अजीब है बस्ती यह
भाषा कहते हैं जिसे :
हर शब्द जहाँ परिचित लगता है
मुझे
दूर से ही लेकिन
पास जब जाता हूँ उस के
वह कोई और निकलता है
उदासीन मुझ से
कभी कोई मुस्कराता हुआ
मेरे भरोसे पर
कि उसको जानता हूँ मैं ;
कभी वह ख़ुद नहीं होता
परिचय अपना
अन्य में ही अपना परिचय
दे पाता है—
अन्य के पास जो जाऊँ
उस से और अन्य का
इंगित ही पाऊँ
दर-दर भटक रहा हूँ मैं
जाने कब से
इस बस्ती में पा लेने
अपना घर !
—
31 जनवरी 2010