एक स्त्री आई जीवन में
थोड़ी-सी चाँद की शीतलता
ढेर-सी सूरज की गर्मी
कुछ-कुछ मिठास
मिश्री की डली-सी लिए
उसकी बाँसुरी देह में
बजने लगे राग अपने आप
उम्र के चालीसवें बरस में।
एक स्त्री आई जीवन में
थोड़ी-सी चाँद की शीतलता
ढेर-सी सूरज की गर्मी
कुछ-कुछ मिठास
मिश्री की डली-सी लिए
उसकी बाँसुरी देह में
बजने लगे राग अपने आप
उम्र के चालीसवें बरस में।