सुबह का सिपहसालार अपनी मशालें लेकर आता है
शहर में चुपचाप दाख़िल होता है उजाला
मैं दरवाज़ा नहीं खोलता
हवा का क़ासिद कुछ सूखे पत्ते रख जाता है दरवाज़े पर
मैं दरवाज़ा नहीं खोलता
शाम को आकाश में कई रंग होते हैं जिनसे बन सकती है एक मुकम्मल तस्वीर
मैं एक ऐसा मुसव्विर हूँ जिसकी कूची दम तोड़ चुकी है
मैं दरवाज़ा नहीं खोलता
हर रोज़ कुछ तेज़ धड़कता है दिल
हर रोज़ कुछ ज़्यादा घुटती है साँस
हर रात खुलता है मेरा दरवाज़ा बेख़ौफ़
हर रात सीने पर उतरता है रात का बाज़ !