रात को फिर बादल ने आकर
गीले गीले पंजों से जब दरवाजे पर दस्तक दी,
झट से उठ के बैठ गया मैं बिस्तर में
अक्सर नीचे आकर रे कच्ची बस्ती में,
लोगों पर गुर्राता है
लोग बेचारे डाम्बर लीप के दीवारों पर--
बंद कर लेते हैं झिरयाँ
ताकि झाँक ना पाये घर के अंदर--
लेकिन, फिर भी--
गुर्राता, चिन्घार्ता बादल--
अक्सर ऐसे लूट के ले जाता है बस्ती,
जसे ठाकुर का कोई गुंडा,
बदमस्ती करता निकले इस बस्ती से!!