पता नहीं वह कौन सा दिन था
इतवार या सोमवार
मैंने यूँ ही एक किताब उठाई
लिबरेशन का नया अंक था
दूसरे या तीसरे सफ़े पर बाबू बजरँगी की स्टोरी थी
गोकि यह स्टोरी मैं कितनी दफ़े कितने अख़बारों मैगजीनों में पढ़ चुकी
फिर भी इस दफ़े बाबू बजरँगी का भूत मेरे पीछे पड़ गया है
मैंने रात की पहली नींद का पहला सपना देखा
बाबू बजरँगी गर्भवती औरतों का गर्भ त्रिशूल पर नचाता जा रहा था
मैंने दूसरा सपना देखा
म्याँमार में भयानक गोलीबारी हो रही थी
एक बड़ा सा त्रिशूल बर्मी औरतों का पेट फाड़ रहा था
विएतनाम की सड़क पर एक बदहवास बच्ची दौड़ती चली जा रही थी
उसके पीछे बाबू बजरँगी त्रिशूल लिए बढ़ा आ रहा था
इराक की दबी हुई राख से उसने एक भ्रूण खोज निकाला और
पालमीरा के धवस्त अवशेषों में सलीब की तरह टाँग दिया
मेरे हर सपने में बाबू बजरँगी का त्रिशूल एक अजन्मे बच्चे का शव नचाता हुआ चला आता है
यह बात मैंने अपनी साइकोलॉजिस्ट को बताई
जो हाल ही में शिकागो से क्लिनिकल साइकोलॉजी पढ़ कर लौटी है
घुँघराले बालों वाली वह सुन्दर गुजराती लड़की हंसी
मुसलमानों के साथ ऐसा ही होना चाहिए
आपको जब भी बाबू बजरंगी का खयाल सताए
आप ठण्डे पानी से हाथ धो लीजिए और मन्त्राज चैण्ट कीजिए —
सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामया