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बारात तैयारी / बैगा

बैगा लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

तरी नानी नानर नानी।
तरी नानी नानर नानी।
तारी नाना रे नान। दैया मोरे 2
काहिक नाने रोथस कुँवर,
काहिक नीता रोथस,
कुँवर झुर-झुर रोथस, कुँवर मोरे 2
झै रो की झै रो कुँवर,
झै रो की झै रो कुँवर,
तोर मोजा बेयास देहूँ,कुँवर मोरे 2
ऊतक की सूनय कुँवर,
ऊतक की सुनय कुँवर,
झुर झुरी रो थे, दैया मोरी 2
काहिक नीता रोथस कुँवर,
काहिक नीता रोथस कुँवर,
झुर झुरी रोथस कुँवर, दैया मोरे 2
झै रो की झै रो कुँवर,
झै रो की झै रो कुँवर,
तोरे नाने जूता बेयास देहूँ, कुँवर मोरे 2
ऊतक की सुनय कुँवर,
झुर झुरी रोथस कुँवर, मोरे 2
काहिक नीता रोथस कुँवर 2
 झुर झुरी रोथस कुँवर, मोरे 2
तोर नाने झंगा बेयास देहूँ,कुँवर मोरे 2
ऊतकी सुनय कुँवर 2
झुर झुरी रोथस कुँवर, मोरे 2
झै रो की झै रो कुँवर,
तोर नाने कमीज बेयास देहूँ,कुँवर मोरे 2
ऊतकी सुनय कुँवर 2
झुर झुरी रोथस कुँवर, मोरे 2
झै रो की झै रो कुँवर,
तोर नाने हवाल बेयास देहूँ,कुँवर मोरे 2
ऊतकी सुनय कुँवर 2
झुर झुरी रोथस कुँवर, मोरे 2
झै रो की झै रो कुँवर 2
तोर नाने फेटा बेयास देहूँ, कुँवर मोरे 2
ऊतकी सुनय कुँवर 2
झुर झुरी रोथस कुँवर, मोरे 2
झै रो की झै रो कुँवर 2
तोर नाने सरुता बेयास देहूँ, कुँवर मोरे 2
ऊतकी सुनय कुँवर 2
झुर झुरी रोथस कुँवर, मोरे 2
झै रो की झै रो कुँवर 2
तोर नाने तलवार बेयास देहूँ, कुँवर मोरे 2
ऊतकी सुनय कुँवर 2
झुर झुरी रोथस कुँवर, मोरे 2
झै रो की झै रो कुँवर 2
तोर नाने कन्या बेयास देहूँ, कुँवर मोरे 2
ऊतकी सुनै कुँवर 2
खुद खुदी हाँसय कुँवर, मोरे
खुद खुदी हाँसय।
तरी नानी नानर नानी,
तरी नानी नानर नानी,
नाना रे नान। दैया मोर 2

शब्दार्थ –मटूक=फेंटा, सटका=कोडा, झुर-झुरी=झुर-झुर के/करुणा करके, ऊतक की सुनय=ऐसा सुनकर, झंगा=बाना, अंगरखा=कुर्ता, हवाल=सिक्कों की माला, बेसाय=लाकर देना, खुदखुदी= खद-ख, हाँसय=हँसता है, मनरूसी=मन पसंद।

यह बैगा बारात की तैयार का गीत है। जब बारात निकलने के पहले दूल्हे को सजाते हैं। उसी समय दूल्हा कुछ कमी देखकर गुसा हो जाता है और रोने लगता है। तब गीत गाने वाली सुहासिनें पूछती हैं- अरे कुँवर ! दूल्हे राजा तीन इतना झुर-झुर के क्यों रो रहे हो? क्या कमी रह गई है? तुम्हें और क्या चाहिए? तुम व्यर्थ क्यों रो रहे हो। तू मत रो दूल्हे राजा। तेरे माता-पिता ने तेरे लिए मोजे-जूते, नया बान, कमीज, पेंट-शर्ट फेंटा, सोने की मोहर, चाँदी की सूतिया हवाल आदि सब मँगवाये हैं। दूल्हे का सरोता और तलवार भी मँगवाई है। और तुझे क्या चाहिए। गीत गाने वाली बूढ़ी महिलाएँ दूल्हे के मन की बात ताड़ लेती हैं और कहती हैं- तू मत रो, तेरे लिए सुंदर कन्या ले आएंगे। तेरा विवाह बहुत सुंदर लड़की से हो रहा है।

यह सुनकर रोता दूल्हा खद-खद हँसने लगता है और दूल्हे का सारा श्रिंगार खुशी-खुशी पहनने लगता है। दुल्हा तैयार होता है, तब तक दूल्हे के पिता और राजा दूल्हे के लिये सुंदर हष्ट-पुष्ट घोडा ले आते हैं। वे अपने हाथों से घोडा सजाने लगते है। पहले घोड़े को अच्छी तरह नहलाया-धुलाया गया। फिर उसे तेल फुलेल लगाया। घोड़े के पैरों में लोहे और पीतल के बजने वाले पैजन पहनाएँ। बजने वाले घुंघरू बाँधे। उसे चाँदी की लगाम, सोने की टोपी और सोने का ही हार पहनाया। घोड़े पर मखमली जीन कसी।

इसके बाद दोसी और महिलाओं ने सूपे में चने की डाल, मनरूसी धान और काँस थाली में राखी। एक तांबे का लोटा रखा। फिर उस घोड़े के पैर धुलाये। चने की दाल और मनरूसी धान के चावल खिलाये। इसके बाद सोने का सटका (कोडा) रखा। दूल्हे के हाथ में सुंदर सरोता दिया और बगल में तलवार बाँधी। अब दूल्हे राजा बारात जाने को पूरी तरह से तैयार हो गया।

उसी समय गीत में कहा जा रहा है – कुँवर! तुम जाओ, कन्या को बिहाकर लाओ। महिलाएँ फिर गाती है- देखना कुँवर! जरा धीरे लढाई करना। कन्या राजा सिंधोला की सुंदर बेटी है। गोरी है। रूपवान है। कुँवर कहता है। हाँ, जीतकर आऊँगा। हार के नहीं। दूल्हा घोड़े पर चढ़ता है। और बारात विदा हो जाती है।