Last modified on 31 मार्च 2011, at 18:48

बारिश-1 / परवीन शाकिर

नवेद कोई बनाम-ए-मौसम
न तहनियत कोई चश्म ऐ नाम को
न मुस्कराने का था सबब कुछ
मगर मिले तो
ख़ुशी छुपाए न छुप रही थी
हम अपनी आवाज़ सुन के हैरान हो रहे थे
हमारे लहज़े में
रात में होने वाली बारिश खनक रही थी