अपनी लिखी
वो तीन क़िताबें
जो दी थी तुमने
पिछली मुलाक़ात में
रखी रहती हैं सिरहाने
कि पढ़ सकूँ फुर्सत से
जब जी चाहे इन्हें
कुछ पन्नों से
मिलती है ज़िन्दगी
मुस्कराती ऐसे
जैसे क़ैद तस्वीरों में
मुलाक़ातें अपनी
ज़हन को उलझाते
सवालों से झाँकते
नाकाफ़ी जवाब
चंद क़िस्से तीखे
हमारी नोंक-झोंक से
कुछ संजीदा कहानियाँ
कह गये थे जो
तुम सहजता से,
बर्फ सी जमीं
तन्हाईयाँ, तल्ख़ियाँ,
समंदर सी बहती
ख़्वाहिशें, ख़ुशियाँ,
आसमां सी विस्तृत
उड़ान जुनून भरी,
लम्हा लम्हा फिसलता
वक़्त रेत सा...
सालों का सफ़र
पल में तय कराते
सफ़हे ज़िन्दगी के
भाव तुम्हारे
प्रेम की माला के,
बिखरे मोती से
चुनती रहती हूँ, अक्सर...