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बिछड़ना / राग तेलंग

एक दिन
टूटना पड़ता है शाख को पेड़ से

जिस पर लगकर
झूलते हुए इतराते थे पत्ते

जहाँ कोयल बैठा करती और हरियल तोतों के झुंड भी

जिससे भरी दुपहरी में खेलते
स्कूल से गच्चा मारकर आए बच्चे

उस शाख में से
झाँकता था नीले आसमान का केनवास
जिसमें कूची चलाती रंग-बिरंगी पतंगें

बिटिया की शादी हुई तो
विदा के समय पिता ने तसल्ली के लिए कहा
`एक दिन टूटना पड़ता है शाख को पेड़ से´

धार-धार टपकते हुए
हरेक आँसू के साथ
एक कहानी उतर रही थी

यह स्मृति की किताब के
एक अध्याय का
आख़िरी पन्ना उलटना था ।