Last modified on 26 अक्टूबर 2012, at 22:22

बींठ (4) / सत्यनारायण सोनी

बनकर थेपड़ी,
छाणे
घुस गई वह
चूल्हे में
धिंगाणे।
अब सेकेगी,
फुलाएगी
गरमागरम फुलके
फिर बनकर राख
मांजेगी
जूठे बरतन सारे।

2005