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बीज / कन्हैया लाल सेठिया

ढ़कीजग्यो
कळायण स्यूं सूरज
उतरग्यो
दिन रो मूंडो,
अंधेरीजग्यो आभो
आ‘र बैठग्या
आळां में पंखेरू
पण सुण‘र छांटा रो
बोलाळो
जागग्यो धरती में
सूतो सिरजण !