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बुढ़िया / अशोक वाजपेयी

बुढ़िया की झोली में
कुछ फल थे सूखे हुए,
कुछ दबी हुई आकांक्षाएँ,
कुछ अनकहे रह गए शब्द।
बुढ़िया के घर में अन्न न था,
न कोई बिछौना,
न कोई, किसी के होने की आवाज़।
अपनी झोली बग़ल में रखे हुए
बुढ़िया पसरी रहती है
ओसारे में
जैसे जीवन बिछा हो मृत्यु के फर्श पर।