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बेनाम आदमी / विप्लव ढकाल

हर दिन
इसी आईने के आगे खड़ा होता हूँ
और देखता हूँ -–
एक बेनाम आदमी का
खोया हुआ चेहरा ।

यह बनगोभी का सिर
और साग के बाल !
यह मिरिच का जीभ
और सेम के होंठ !

यह चिचिंड़ा की नाक
और टमाटर की आँखें !
यह लौकी का हाथ
और खीरे के पैर !

यह अदरक का मस्तिष्क
और प्याज के दिल !
यह भिण्डी का लिंग
और आलू के अण्डकोष !

चावल के बोरे से बना
एक अराजनीतिक शरीर ।
जिस के नस नस मे बह रहा है
गुन्द्रुक<ref>हरी पत्तेदार सब्ज़ी को एक दो घण्टे धूप में रखकर किसी बर्तन में ज़मीन के अन्दर दबाकर रख दिया जाता है और १५-२० दिन में उसको निकाल कर सुखा दिया जाता है। यह पकवान खाने में खट्टा और स्वादिष्ट होता है। </ref> का ख़ून ।

पीढ़ियों से इसी आईने के अन्दर
मेरे विचार को चिढ़ाता खड़ा
यह बेनाम आदमी कौन है ?
कौन है यह बेनाम आदमी ?

और हर दिन
क्यों पूछता है
मेरा नाम ?

शब्दार्थ
<references/>