न धूप खिलती है,
न बदरी छाती है
जब से तुम गए हो
यहाँ कुछ भी तो नहीं होता--
जहाँ कुछ भी न घटता हो
वहाँ जीवन का
घटते चले जाना
कितना बेमानी होता है...!
न धूप खिलती है,
न बदरी छाती है
जब से तुम गए हो
यहाँ कुछ भी तो नहीं होता--
जहाँ कुछ भी न घटता हो
वहाँ जीवन का
घटते चले जाना
कितना बेमानी होता है...!