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बेलुरऽ बलमुवां / परमानंद ‘प्रेमी’

सखि हे लाजऽ के बात की कैहौं बलमुवां बड़ी बेलुरऽ ना॥
कामऽ के मातलऽ पियबा ऐलै
खींची लगैलकऽ छतिया।
दाँतऽ प’ दाँत धरि बहियाँ मरोड़ै,
मानै नैं एको टा बतिया॥
बलमुवां बड़ी बेलुरऽ ना सखि हे लाजऽ के बात की कैहौं॥
कखनू बलमुवां आँचरऽ उघारै,
कखनू निहारै ठाट।
कखनु माथा के खोपऽ खोलै,
लाजऽ सें होय गेलों काठ॥
बलमुवां बड़ी बेलुरऽ ना सखि हे लाजऽ के बात की कैहौं॥
करलऽ सिंगार सब बेरथ भेलऽ,
ऐसैं गुजारलकऽ रतिया।
मनों के बात मन्है रहि गेलऽ
रही-रही तड़पै छतिया॥
बलमुवां बड़ी बेलुरऽ ना सखि हे लाजऽ के बात की कैहौं॥
कहै ‘प्रेमी’ सुनऽ बेलुरऽ,
हौर राखऽ नैं मनमां।
मनों के बात जों पूरा नैं होल्हौं,
सेजिया सजैथौं ऐंगनमां॥
बलमुवां बड़ी बेलुरऽ ना सखि हे लाजऽ के बात की कैहौं॥