Last modified on 17 जुलाई 2015, at 18:15

बेहद हूँ / पूजा कनुप्रिया

तुम
एक कंकड़
मेरी गहराई में कहीं
तुम्हारी हलचल
मुझे निकाल देती है
मेरे किनारों की हद से बाहर

तुम
अमर बेल
मेरे तन को समेटे
लपेटे अपने आप में
मेरा जीवन तब तक
जब तक तुम मेरे पास

सुनो
तुम जैसे भी
अच्छे-बुरे
मेरी हद हो

मैं जैसी भी
सही-ग़लत
तुम्हारे लिए बेहद हूँ