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बौधोॅ / नवीन ठाकुर ‘संधि’

कलकोॅ सपना कत्तेॅ छेलै मीट्ठोॅ,
आय खना कत्तेॅ छै तीतोॅ?

बाप तेॅ हमरोॅ मरी गेलोॅ,
माय रहै छै हमरोॅ बीमार।
आबेॅ हमरोॅ बुढ़ापा आबी गेलोॅ,
रही गेल्हां हम्में कुमार।
रगोॅ-रगोॅ में पड़ी गेलोॅ गेठोॅ,

माय रोॅ मीजाजोॅ में कुछूँ बुझाय छै सुधार,
हमरोॅ लेली कुटुम्ब मंगाय लागलै भरमार।
कुटुमें पूछतै कत्ते उमर छौं कुमार,
हम्में कहबै, आबेॅ पैसठ करै छियौं पार।
सब्भै घूरी-घूरी देखी बोललै उमर छै जोठोॅ,

लड़की रोॅ उमर कत्तेॅ छौं,
कहलकै लगभग सत्तर अस्सी में छौं।
है सुनी केॅ माय के सिकुड़ी गेलै भौंव,
बच्चा-बुतरू नै होतै मतुर, कुमारोॅ कोय नै कहतोॅ।
हमरा में की बचलोॅ छै "संधि" खाली सीठोॅ?